सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भंसाली कही प्रचार के चक्कर मे तो नही दिखा रहा है फिल्म, क्षत्रियो को


🎬फिल्म का पोस्टर तो काफी आकर्षित है। परन्तु विवाद थमने के बजाय बढ़ता ही जा रहा हैं। खासकर सवाल यह उठ रहा है कि जब करऩी सेना/विरोधियो ने फिल्म देखी ही नही तो कैसे कह सकते है - फिल्म मे ं ऐतिहासिक तथ्यो के साथ छेड़छाड़ की गई है? सवाल में काफी दम है। इसे पढ़कर आप भी  यही सोच रहे होगे।
बड़ी संख्या मे विरोध को नकारा नहीं जा सकता। सोचो इनको अगर लग रहा है कि पद्मावती को गलत सलीके से फिल्म में प्रस्तुत किया गया है तो फिल्म को दिखा देनी चाहिए।
क्योकि किसी की भावना को ठेस पहुंचाकर फिल्म निर्माता अपनी रचनात्मकता को नहीं बेच सकते। क्योकि सवाल एक बहुत बड़े समुदाय/जाति को शौर्य व शान का है।
हाँ। फिल्म बनाना कोई बुरी बात नहीं है। क्योकि फिल्म-निर्माताओ को भी उतनी आजादी है। परन्तु चन्द पैसो लालच मे काल्पनिक सीन मत घुसैड़िये।

क्योकि रानी पद्मावती कोई सामान्य स्त्री नही थी। वे एक पवित्र  व देवी के समान थी। जिसने अपने पति राणा रतन सिंह के युद्ध में वीर गति को प्राप्त होने पर, दुश्मन अलाउद्दीन खिलजी से अपना पतिव्रता-धर्म को बचाते हुये जलती आग के कुण्ड में सहेलियो (जिनके पति युद्ध में मारे गये) के साथ कुद कर जौहर किया था। जहां आज भी चितौड़ मे वो कुंड पड़ा है। जो यह पुछ रहे है ना कि रानी पद्मावती काल्पनिक थी उनको यही जवाब है।

रानी पद्मावती के विरोध को देखते हुये भंसाली ने एक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया ,जिसमें वो एक याचक की तरह सभी से हाथ जोड़कर  विनती कर रहा है की" फिल्म में ऐसा कुछ नहीं है कि विवाद किया जाये। राजपुत समाज खुद इस फिल्म को देखकर गर्वान्वित महसुस करेगा। अब यहां पर यह सवाल उठता है कि यदि वाकई फिल्म में ऐसा ही तो फिर भंसाली फिल्म को दिखाने में क्यो हिच-किचा रहा है। सीधा करणी सेना पैनल को दिखाता क्यो नहीं।
इसका मतलब यह हुआ है कि या तो वाकई गड़बड़ है फिल्म में या फिर फिल्म का फोकट मे प्रचार करवा रहा  है।

यहां तक की उसने अभी सेंसर बोर्ड को भी अप्लाई नही किया। ताकि कुछ समय के लिए करणी सेना से प्रचार करवाते रहे।
लेकिन अब तलवार लेकर टीवी डिबेट में बैठे करणी सेना के पदाधिकारी खुलमखुला कह रहे है कि जब तक हमारे शरीर मे रक्त रहेगा तब तक  पुरजोर विरोध करेगे,चाहे परिणाम भले कुछ भी हो। और  हर हालात में फिल्म रिलीज नहीं होने देगे। चाहे भले ही फिल्म सही हो। क्योकि भंसाली ने किसी शान को मजाक समझ रखा है क्या?

सबसे चौकाने वाली बात यह भी की भंसाली को धमकी देते हुवे कहा की हम भंसाली की मां के उपर फिल्म बनाएंगे ,जिसमें दीपीका पादुकोण हिरोईन होगी। फिर भांड भंसाली को पता चलेगा कि किसी शान व शौर्य के साथ खिलवाड़ क्या होता है।

यदि आपको हमारा यह पोस्ट पसन्द आया हो तो अपने दोस्तो के साथ शेयर जरूर करे। और हां कमेन्ट करके अपनी बात को भी बड़ी बेबाकी से रखीये।
ई-मेल डालकर हमारे ब्लॉग की सदस्यता(Subscribe)ले लेवे। ताकि नयी पोस्ट की सुचना मिल सके आपको सबसे पहले
आप हमे फेसबुक (क्लिक करे) पर भी फेलो कर सकते है। जहां मिलेगा आपको छोटे-छोटे गर्मा-गर्म चटखरे,राजनीतिक मसाला और भी बहुत कुछ,बस हमें फोलो करे ओर जाने!!

यह वीडियो भी देखे-



                     




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

डिग्री के दिन लदे, अब तो स्किल्स दिखाओं और जॉब पाओ

  भारत में बेरोजगारी के सबसे बड़े कारणों में प्रमुख कारण कार्य क्षेत्र के मुताबिक युवाओं में स्किल्स का भी नहीं होना है। साफ है कि कौशल को बढ़ाने के लिए खुद युवाओं को आगे आना होगा। क्योंकि इसका कोई टॉनिक नहीं है, जिसकी खुराक लेने पर कार्य कुशलता बढ़ जाए। स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद युवाओं को लगता है कि कॉलेज के बाद सीधे हाथ में जॉब होगी। ऐसे भ्रम में कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा हर दूसरा स्टूडेंट रहता है। आंखें तब खुलती है, जब कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद बेरोजगारों की भीड़ में वो स्वत :  शामिल हो जाते है। क्योंकि बिना स्किल्स के कॉर्पोरेट जगत में कोई इंटरव्यू तक के लिए नहीं बुलाता है, जॉब ऑफर करना तो बहुत दूर की बात है। इंडियन एजुकेशन सिस्टम की सबसे बड़ी कमी- सिर्फ पुरानी प्रणाली से खिसा-पीटा पढ़ाया जाता है। प्रेक्टिकल पर फोकस बिल्कुल भी नहीं या फिर ना के बराबर होता है। और जिस तरीके से अभ्यास कराया जाता है, उसमें स्टूडेंट्स की दिलचस्पी भी उतनी नहीं होती। नतीजन, कोर्स का अध्ययन के मायनें सिर्फ कागजी डिग्री लेने के तक ही सीमित रह जाते है।   बेरोजगारों की भीड़ को कम करने के लि

राजनीति में पिसता हिंदू !

कांग्रेस की जयपुर रैली महंगाई पर थी, लेकिन राहुल गांधी ने बात हिंदू धर्म की. क्यों ? सब जानते है कि महंगाई इस वक्त ज्वलंत मुद्दा है. हर कोई परेशान है. इसलिए केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस ने राष्ट्रव्यापी रैली के लिए राजस्थान को चुना. लेकिन बात जो होनी थी, वो हुई नहीं. जो नहीं होनी चाहिए थी, वो हुई. साफ है कि हिंदुस्तान की राजनीति में धर्म का चोली-दामन की तरह साथ नजर आ रहा है. भारतीय जनता पार्टी मुखर होकर हिंदू धर्म की बात करती है. अपने एजेंडे में हमेशा हिंदुत्व को रखती है. वहीं 12 दिसंबर को जयपुर में हुई कांग्रेस की महंगाई हटाओ रैली में राहुल के भाषण की शुरुआत ही हिंदुत्व से होती है. राहुल गांधी ने कहा कि गांधी हिंदू थे, गोडसे हिंदुत्ववादी थे. साथ ही खुलकर स्वीकर किय़ा वो हिंदू है लेकिन हिंदुत्ववादी नहीं है. यानी कांग्रेस की इस रैली ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है. बहस है- हिंदू बनाम हिंदुत्ववादी. इस रैली का मकसद, महंगाई से त्रस्त जनता को राहत दिलाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना था. महंगाई हटाने को लेकर अलख जगाने का था. लेकिन राहुल गांधी के भाषण का केंद्र बिंदु हिंदू ही रह

आधुनिकता की दौड़ में पीछे छूटते संस्कार

किसी भी देश के लिए मानव संसाधन सबसे अमूल्य हैं। लोगों से समाज बना हैं, और समाज से देश। लोगों की गतिविधियों का असर समाज और देश के विकास पर पड़ता हैं। इसलिए मानव के शरीरिक, मानसिक क्षमताओं के साथ ही संस्कारों का होना अहम हैं। संस्कारों से मानव अप्रत्यक्ष तौर पर अनुशासन के साथ कर्तव्य और नैतिकता को भी सीखता हैं। सबसे बड़ी दिक्कत यह हैं कि स्कूल और कॉलेजों में ये चीजें पाठ्यक्रम के रूप में शामिल ही नहीं हैं। ऊपर से भाग दौड़ भरी जिंदगी में अभिभावकों के पास भी इतना समय नहीं हैं कि वो बच्चों के साथ वक्त बिता सके। नतीजन, बच्चों में संस्कार की जगह, कई और जानकारियां ले रही हैं। नैतिक मूल्यों को जान ही नहीं पा रहे हैं।  संसार आधुनिकता की दौड़ में फिर से आदिमानव युग की तरफ बढ़ रहा हैं। क्योंकि आदिमानव भी सिर्फ भोगी थे। आज का समाज भी भोगवाद की तरफ अग्रसर हो रहा हैं। पिछले दस सालों की स्थिति का वर्तमान से तुलना करे तो सामाजिक बदलाव साफ तौर पर नज़र आयेगा। बदलाव कोई बुरी बात नहीं हैं। बदलाव के साथ संस्कारों का पीछे छुटना घातक हैं।  राजस्थान के एक जिले से आई खबर इसी घातकता को बताती हैं। आधुनिकता में प