कांग्रेस की जयपुर रैली महंगाई पर थी, लेकिन राहुल गांधी ने बात हिंदू धर्म की. क्यों ? सब जानते है कि महंगाई इस वक्त ज्वलंत मुद्दा है. हर कोई परेशान है. इसलिए केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस ने राष्ट्रव्यापी रैली के लिए राजस्थान को चुना. लेकिन बात जो होनी थी, वो हुई नहीं. जो नहीं होनी चाहिए थी, वो हुई.
साफ है कि हिंदुस्तान की राजनीति में धर्म का चोली-दामन की तरह साथ नजर आ रहा है. भारतीय जनता पार्टी मुखर होकर हिंदू धर्म की बात करती है. अपने एजेंडे में हमेशा हिंदुत्व को रखती है. वहीं 12 दिसंबर को जयपुर में हुई कांग्रेस की महंगाई हटाओ रैली में राहुल के भाषण की शुरुआत ही हिंदुत्व से होती है.
राहुल गांधी ने कहा कि गांधी हिंदू थे, गोडसे हिंदुत्ववादी थे. साथ ही खुलकर स्वीकर किय़ा वो हिंदू है लेकिन हिंदुत्ववादी नहीं है. यानी कांग्रेस की इस रैली ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है. बहस है- हिंदू बनाम हिंदुत्ववादी. इस रैली का मकसद, महंगाई से त्रस्त जनता को राहत दिलाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना था. महंगाई हटाने को लेकर अलख जगाने का था. लेकिन राहुल गांधी के भाषण का केंद्र बिंदु हिंदू ही रहा.
इधर, राजस्थान बीजेपी ने भी प्रेस वार्ता कर कांग्रेस रैली को लेकर निशाना साधा. केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि पेट्रोल और डीजल पूरे भारत में सबसे ज्यादा राजस्थान में महंगा है. ऐसे में केंद्र सरकार को घेरने की बजाय गहलोत सरकार खुद अपने गिरेबान में झांके. मंत्री शेखावत का ये बयान जायज है. खुद के अंदर बिना झांके दूसरे के ऊपर ठीकरा फोड़ना सही नहीं है.
ये सच है कि भारत की राजनीति धर्म की बिना अधूरी है. इसका उदाहरण जयपुर में हुई कांग्रेस रैली में भी देखने को मिला. बड़ा सवाल ये कि राजनीति का ये स्वरूप बदलेगा कब ?
अब बात हिंदू और हिंदूत्ववादी की परिभाषा की. असली हिंदू कभी हिंदूत्व से अलग नहीं हो सकता है. क्योंकि ये ऐसा ही है, जैस IIT में पढ़ने वाला कहे कि वो IITian नहीं हैं.
सच कहे तो राहुल गांधी ने अपने सियासी फायदे के लिए गलत ढंग से हिंदुत्व को परिभाषित किया. राहुल गांधी ने कहा कि हिंदू कभी डरता नहीं है. यहां तक ठीक था. लेकिन आगे राहुल गांधी कहते है कि हिंदुत्ववादी, डरता है-झुक जाता है. हिंदुत्ववादी पीछे से छूरा घोंपता है. सब जानते है कि राहुल का ये सियासी हमला था. लेकिन सवाल ये कि सियासत के लिए आखिर कब तक हिंदू धर्म का अपमान होता रहेगा.
बिना ईंटों के दीवार का निर्माण नहीं हो सकता है. ऐसे ही बिना हिंदुत्व के कोई हिंदू नहीं हो सकता. लेकिन अर्थ को अपने हिसाब से तोड़ मरोड़ कर जनता को भ्रमित करने वाले नेताओं को समझाना, कुत्ते की टेढ़ी पूंछ को सीधी करने जैसा है.
बहरहाल, जनता खुद को जागरूक होना होगा. नेताओं के भाषणों के मायनों के समझना होगा. भक्त बनकर बिना सोचे समझे बातों को ग्रहण करना छोड़ना होगा. तब कहीं सियासत में सुधार संभव हो सकता है.
- अणदाराम बिश्नोई, पत्रकार
बहुत ही बढ़िया ब्लॉग
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएं