सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

झालरापाटन - वसुंधरा राजे या मानवेंद्र जसोल, कौन जीतेगा ? पढ़िए सटीक विश्लेषण

झालरापाटन सीट वैसे तो वसुंधरा राजे के गढ़ के तौर पर देखी जाती है ...यहां मैं इस सीट को बीजेपी का गढ़ नहीं कह रहा हूं, ये ध्यान देने लायक है ...वहीं इस सीट पर मानवेंद्र सिंह के उतरने से क्या वसुंधरा राजे का तिलिस्म टूट जाएगा या फिर मानवेंद्र का स्वाभीमान धराशाही हो जाएगा ...इसको समझने के लिए पहले आपको यहां के जातिगत समीकरण समझने होंगे 

झालरापाटन से वसुन्धरा के सामने मानवेन्द्र सिंह

जातिगत समीकरण :
इस सीट पर करीब 40,000 मुस्लिम मतदाता, 28000 दांगी, 20000 राजपूत, 21000 ब्राह्मण, 13000 धाकड़, 21500 गुर्जर और करीब 19000 राठौर तेली मतदाता हैं.......

अब आपको वो मुद्दे बताते हैं जो वसुंधरा या मानवेंद्र किसी को भी जिता सकते हैं या फिर हरा सकते हैं ...

वसुंधरा राजे के पक्ष व विरोध में
पक्ष में :
1. वर्तमान मुख्यमंत्री होना उनके पक्ष में है
2. 3 बार पहले भी जीत चुकी हैं, जातिगत समीकरणों को अपने और पुत्रवधु के रिश्तों के साथ साधती हैं
3. झालरापाटन में कार्यकर्ताओं पर अच्छी पकड़ है
4. झालरापाटन के विकास में अच्छी भूमिका निभाई है
5. जाट, राजपूत और गुर्जर जाति को रिश्तों के जरिए साधती हैं

विरोध में :
1. एंटी इंक्बेंसी वसुंधरा के खिलाफ जा सकती है
2. फिल्म पद्मावत और आनंदपाल प्रकरण के बाद राजपूत बीजेपी से नाराज हैं
3. 2 अप्रैल का दलित आंदोलन बीजेपी के खिलाफ काम करेगा
4. सचिन पायलट का गुर्जर होना और मानवेंद्र का राजपूत होना ..गुर्जर और राजपूत वोटों को प्रभावित करेगा
5. मुस्लिम वोट बीजेपी से इतर कांग्रेस के साथ जा सकता है
6. झालरापाटन में दलित, राजपूत, मुस्लिम और दांगी मिलकर वसुंधरा को हरा सकते हैं

मानवेंद्र के पक्ष-विरोध में क्या है ?
पक्ष में :
1. मानवेंद्र स्वाभीमान के नाम पर राजपूत वोट हासिल कर सकते हैं
2. मानवेंद्र कांग्रेस की वजह से मुस्लिम वोट हासिल कर सकते हैं
3. दलितों की बीजेपी से नाराजगी मानवेंद्र के पक्ष में दिख सकती है
4. मानवेंद्र का इतिहास वसुंधरा राजे पर भारी पड़ सकता है
5. सचिन पायलट अगर झालरापाटन में प्रचार करने पहुंचे तो गुर्जर वोटों को वसुंधरा से छिना जा सकता है
6. गुर्जर, राजपूत, दांगी और मुसलमान और दलित मानवेंद्र को आसानी से जिता देंगे

विरोध में :
1. मुख्यमंत्री के खिलाफ मैदान में आना ही मानवेंद्र के विरोध में है
2. बाडमेर से आकर झालरापाटन में चुनाव लड़ना मानवेंद्र को कमजोर बनाता है
3. झालरापाटन में कांग्रेस के संगठन का कमजोर होना भी मानवेंद्र के खिलाफ है
4. जनता के साथ जुड़ना मानवेंद्र के लिए बड़ी चुनौती होगी
5. मानवेंद्र का नाम मुख्यमंत्री की रेस से बाहर होना भी मानवेंद्र को साधारण बनाता है

निष्कर्ष - वसुंधरा अगर हारती है तो हार के पीछे राजपूत और दलित आक्रोश और मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण होगा और अगर मानवेंद्र हारते हैं तो इसके पीछे उनका झालरापाटन से जुड़ाव ना होना होगा ...लेकिन ये तय है कि मुकाबला आसान नहीं रहेगा .....

विजेन्द्र सोलकी, 1st india news Rajasthan News anchor and Sub-editor
✍ सीनियर न्यू़ज एंकर एवं फर्स्ट इंडिया न्यूज राजस्थान के सब-एडिटर विजेन्द्र सोलंकी जी की एफबी वॉल से अनुमति के तहत

↔↔↔↔↔↔
🆓 आप अपना ई- मेल डालकर हमे free. में subscribe कर ले।ताकी आपके नई पोस्ट की सुचना मिल सके सबसे पहले।
⬇⏬subscribe करने के लिए इस पेज पर आगे बढ़ते हुये ( scrolling) website के अन्त में जाकर Follow by Email लिखा हुआ आयेगा । उसके नीचे खाली जगह पर क्लिक कर ई-मेल डाल के submit पर क्लिक करें।⬇⏬
फिर एक feedburn नाम का पेज खुलेगा।  वहां कैप्चा दिया हुआ होगा उसे देखकर नीचे खाली जगह पर क्लिक कर उसे ही लिखना है। फिर पास में ही " ♿complate request to subscription" लिखे पर क्लिक करना है।
उसके बाद आपको एक ई मेल मिलेगा। जिसके ध्यान से पढकर पहले दिये हुये लिंक पर क्लिक करना है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

डिग्री के दिन लदे, अब तो स्किल्स दिखाओं और जॉब पाओ

  भारत में बेरोजगारी के सबसे बड़े कारणों में प्रमुख कारण कार्य क्षेत्र के मुताबिक युवाओं में स्किल्स का भी नहीं होना है। साफ है कि कौशल को बढ़ाने के लिए खुद युवाओं को आगे आना होगा। क्योंकि इसका कोई टॉनिक नहीं है, जिसकी खुराक लेने पर कार्य कुशलता बढ़ जाए। स्कूल की पढ़ाई खत्म करने के बाद युवाओं को लगता है कि कॉलेज के बाद सीधे हाथ में जॉब होगी। ऐसे भ्रम में कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़ रहा हर दूसरा स्टूडेंट रहता है। आंखें तब खुलती है, जब कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने के बाद बेरोजगारों की भीड़ में वो स्वत :  शामिल हो जाते है। क्योंकि बिना स्किल्स के कॉर्पोरेट जगत में कोई इंटरव्यू तक के लिए नहीं बुलाता है, जॉब ऑफर करना तो बहुत दूर की बात है। इंडियन एजुकेशन सिस्टम की सबसे बड़ी कमी- सिर्फ पुरानी प्रणाली से खिसा-पीटा पढ़ाया जाता है। प्रेक्टिकल पर फोकस बिल्कुल भी नहीं या फिर ना के बराबर होता है। और जिस तरीके से अभ्यास कराया जाता है, उसमें स्टूडेंट्स की दिलचस्पी भी उतनी नहीं होती। नतीजन, कोर्स का अध्ययन के मायनें सिर्फ कागजी डिग्री लेने के तक ही सीमित रह जाते है।   बेरोजगारों की भीड़ को कम करने के लि

राजनीति में पिसता हिंदू !

कांग्रेस की जयपुर रैली महंगाई पर थी, लेकिन राहुल गांधी ने बात हिंदू धर्म की. क्यों ? सब जानते है कि महंगाई इस वक्त ज्वलंत मुद्दा है. हर कोई परेशान है. इसलिए केंद्र की मोदी सरकार को घेरने के लिए कांग्रेस ने राष्ट्रव्यापी रैली के लिए राजस्थान को चुना. लेकिन बात जो होनी थी, वो हुई नहीं. जो नहीं होनी चाहिए थी, वो हुई. साफ है कि हिंदुस्तान की राजनीति में धर्म का चोली-दामन की तरह साथ नजर आ रहा है. भारतीय जनता पार्टी मुखर होकर हिंदू धर्म की बात करती है. अपने एजेंडे में हमेशा हिंदुत्व को रखती है. वहीं 12 दिसंबर को जयपुर में हुई कांग्रेस की महंगाई हटाओ रैली में राहुल के भाषण की शुरुआत ही हिंदुत्व से होती है. राहुल गांधी ने कहा कि गांधी हिंदू थे, गोडसे हिंदुत्ववादी थे. साथ ही खुलकर स्वीकर किय़ा वो हिंदू है लेकिन हिंदुत्ववादी नहीं है. यानी कांग्रेस की इस रैली ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है. बहस है- हिंदू बनाम हिंदुत्ववादी. इस रैली का मकसद, महंगाई से त्रस्त जनता को राहत दिलाने के लिए सरकार पर दबाव बनाना था. महंगाई हटाने को लेकर अलख जगाने का था. लेकिन राहुल गांधी के भाषण का केंद्र बिंदु हिंदू ही रह

आधुनिकता की दौड़ में पीछे छूटते संस्कार

किसी भी देश के लिए मानव संसाधन सबसे अमूल्य हैं। लोगों से समाज बना हैं, और समाज से देश। लोगों की गतिविधियों का असर समाज और देश के विकास पर पड़ता हैं। इसलिए मानव के शरीरिक, मानसिक क्षमताओं के साथ ही संस्कारों का होना अहम हैं। संस्कारों से मानव अप्रत्यक्ष तौर पर अनुशासन के साथ कर्तव्य और नैतिकता को भी सीखता हैं। सबसे बड़ी दिक्कत यह हैं कि स्कूल और कॉलेजों में ये चीजें पाठ्यक्रम के रूप में शामिल ही नहीं हैं। ऊपर से भाग दौड़ भरी जिंदगी में अभिभावकों के पास भी इतना समय नहीं हैं कि वो बच्चों के साथ वक्त बिता सके। नतीजन, बच्चों में संस्कार की जगह, कई और जानकारियां ले रही हैं। नैतिक मूल्यों को जान ही नहीं पा रहे हैं।  संसार आधुनिकता की दौड़ में फिर से आदिमानव युग की तरफ बढ़ रहा हैं। क्योंकि आदिमानव भी सिर्फ भोगी थे। आज का समाज भी भोगवाद की तरफ अग्रसर हो रहा हैं। पिछले दस सालों की स्थिति का वर्तमान से तुलना करे तो सामाजिक बदलाव साफ तौर पर नज़र आयेगा। बदलाव कोई बुरी बात नहीं हैं। बदलाव के साथ संस्कारों का पीछे छुटना घातक हैं।  राजस्थान के एक जिले से आई खबर इसी घातकता को बताती हैं। आधुनिकता में प