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विकास गया तेल लेने, हम तो धर्म की ठेकेदारी करेगे?? : गुजरात चुनावी राजनीति

सत्ता की भूख इंसान पर किस कदर हावी हो जाती है,यह इस बार गुजरात चुनावी राजनीति में सबको देखने मिल रहा है। चाहे कुछ भी हो जाये बस सत्ता नही जानी चाहिए।बस यही चाहत है हर नेताजी की।  गुजरात का नाम आते ही नमो-नमो जरूर सामने स्मृति पटल पर आ जाता है।चाहे वो नमो चाय हो या फिर नारा तथा मित्रो !

BJP ने 2014 का चुनाव भी गुजरात मॉडल पर लड़ा था। जिसमे ऐतिहासिक जीत मिली।
                                        इसलिए अब प्रश्न यह उठता है की इस गुजरात का चुनाव में विकास मॉडल कहाँ चला गया। माननीय PM साहब को आखिर आंसू बहा के "मै गुजरात का बेटा हुँ।" क्यो कहना पड़ रहा है? यह तो सबको पता है की भाषण के धुरेन्धर मोदी जी गुजरात से है।
अगर वाकई विकास हुआ है तो विकास को जनता के सामने क्यो नही रखते, भावुक मुद्दो के बजाय। आखिर योगी ,PM को आने की कहां जरूरत थी। और इधर से राहुल बाबा मंदिर -मंदिर क्यो भटकते फिर रहे है। कांग्रेस तो हमेशा अपने  को सेकुरलिज्म कहती नही थकती थी तो फिर अब कह रही है की हमारे युवराज राहुल तो हिन्दु ही नहीं बल्की जनेऊधारी हिन्दु है।
Photo : DainikBhaskar





   वाह क्या बात है !! लगता है अब कांग्रेस भी सीख गई ,की सत्ता को पाना है तो हिन्दु बनना पड़ेगा। क्योकि गुजरात में 80% वोट बैंक हिन्दुओ का है। हां हिन्दु बनना कोई बुरी बात नहीं है  परन्तु सत्ता की भुख के खातिर ,भोली भाली जनता को बेवकुफ बना के धर्म के नाम पर वोट बँटोरना कतई सही नही है। इसे सुफ्रीम कोर्ट ने भी गलत बताया है।

पहले तो सवाल यह उठता है की राहुल गाँधी के सोमनाथ मन्दिर की एन्ट्री मे नॉन-हिन्दु पर BJP ने बवाल उठाकर धर्म की राजनीति क्यो की?
                    उपर से कांग्रेस भी कम नहीं, कहती है राहुल जनेऊधारी हिन्दु है। भाई किसी गरीब,बेरोजगार को इससे क्या लेना-देना की ,प्रत्याक्षी हिन्दु है या मुस्लमान?
उसे तो बस अपना विकास चाहिए। परन्तु हमारे राजनेता (चाहेBJP हो या कांग्रेस) को विकास के मुद्दे न सुझकर ,बस धर्म की गंदी राजनीति सुझ रही हैं ।
अब हम सोच सकते है कि अपने देश का लोकतंत्र किस घटीया स्तर तक पहुंच गया है। भारत को संसार को सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश माना जाता है। लेकिन लगता है देश के सफेदपोश नेता इसकी मर्यादा भूल गये है।
                     Photo : DainikBhaskar

बता दुं की हम भी कम दोषी नहीं है। आजकल जनता भी धर्म की राजनीति को ज्यादा प्राथमिकता देने लगी है। इसलिए जनता को धर्म के चश्मे को उतार कर ,राष्ट्र-हित के बारे में सोचकर प्रत्याक्षी चुनना चाहिए।

और एक बात तो लिखना भूल ही गया की राहुल को गुजरात चुनाव आते ही मंदिर क्यो याद आने लगा। पुर्व में तो राहुल ने कहां ़था की लोग मंदिर में लड़कियां छेड़ने जाते है। तो अब मै राहुल से पुछना चाहता हुं की क्या आप भी लड़किया छेड़ने गये।
 अब खुद सोच सकते है की नेताओ /राहुल को जनता की चिंता है फिर अपनी???
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