बैंको के लोन देने का विज्ञापन आपने जरूर देखे होगें। इन विज्ञापनो को देखकर एक बार तो हम जैसे आम आदमी को तसल्ली जरूर मिलती है की कहीं लोन लेकर छोटे कारोबार को आगे बढ़ा सकते हैं।
मेरे साथ भी यही हुआ जब मै अपनी SBI होम ब्रांच(घर के नजदीक) में कॉलेज के द्वारा भेजे कागजात लेकर पत्रकारिता की स्नातक डिग्री के लिए लोन लेने गया।
आखिर क्यो आम आदमी के साथ यह छलावा किया जा रहा हैं। बड़े बड़े उद्योगपत्तियो को हजार करोड़ो में लोन आसानी से मिल जाता हैं। हम जैसे को केवल 4 लाख का लोन देने से भी कतराते हैं, जबकि हम लोन की सारी शर्ते पुरी करते ।
अभी विजय माल्या के बाद नीरव मोदी 11400 करोड़ के आस पास की बड़ी रकम लोन के रूप में डकार कर विदेश भाग गया। उसकी सारी संपति जब्त करे तो भी लोन उसका मात्र 20% रूपया कवर होगा बाकी 80% रूपये तो कभी नही दे पायेगा। सरकार का तो क्या गया? वो तो अपना पांच साल राज करेगी ,और चली जायेगी। कुछ गया तो देश के ईमानदार लोगो के खुन-पसीने की कमाई के टैक्स का पैसा।
आम आदमी के लिए बैंको का लोन केवल विज्ञपन तक ही सिमित हैं।क्योकि बैंको से लोन लेने के लिए मैनेजर को राजी करना काफी मुश्किल काम हैं। आप और हम जैसे तो कर भी नही पाते हैं। कर पाते है तो सिर्फ वहीं जिनकी नेताओ व बड़ो लोगो से जान पहचान होती हैं। या फिर वही कर पाता है जिनकी खुद की पॉकेट गर्म होती है।
रामनगर उत्तराखण्ड के रहने वाले छोटे कारोबारी एन के ध्यानी बताते है कि "बैक लोन लेना मतलब लोहे के चने चबाने के बराबर हैं। पिछले 10 साल से लगातार एक रिमोट एरिया उत्तराखंड में अपना इलैक्ट्रानिक उद्योग सुचारू रूप से चला रहा हूँ। और मेरा बैंक पिछले 10 साल से मेरे कारोबार से सन्तुष्ट है। लेकिन मैं जब भी कारोबार को बढ़ाने की कोशिश करता हूँ तो बैंक मैनेजर बहाने बना कर लोन बढ़ाने से टाल देते हैं। सरकार विज्ञापन देकर जनता को गुमराह करते रहती है। वैगैर लेनदेन या जानपहचान के बिना किसी को लोन मिलना बड़ा मुश्किल काम है।"
ध्यानी अकेले इस समस्या से परेशान नहीं हैं ।इस तरह से न जाने कितने छोटे कारोबारी अपने कारोबार को उड़ान नही दे पाते हैं। मुद्दा बड़ा गंभीर हैं। इसलिए सरकार को विचार कर बैंकिंग की लोन प्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए कानुन बनाने को सोचना चाहिए।
लेखक व काव्य-सृजनकर्ता पुर्ण चन्द्र कान्दपाल कहते हैं की "बैंक के व्यवहार में जब तक बदलाव नहीं आएगा बैंक नहीं सुधर सकते । नियम के अनुसार बैंक कर्मियों को ग्राहक से शाखा में आने पर नमस्ते कहनी चाहिए । यह भी कहते हैं कि ग्राहक भगवान है । अपवाद को छोड़कर अधिकांश सरकारी बैंक कर्मी ग्राहक को आदमी तक नहीं समझते जबकि गैर-सरकारी बैंक ठीक से व्यवहार करते हैं । याद रखिये आप बैंकों को पुनः निजीकरण की ओर ले जा रहे हैं।"
वहीं, हाल नई दिल्ली में रहने वाले स्व-व्यवसायी संजीव कोहली बताते हैं कि "मै अब तक 6 बैंको में मुद्रा-लॉन के लिए आवेदन कर चूका हुँ..…वो भी LLP पंजीकृत हैं कंपनी....कोई ना कोई बहाना कर के लॉन देने से मना कर देते हैं।"
यह थी कुछ शख्स की व्यथा, अगर आप पुछने निकलोगो तो लाखो लोग ऐसी शिकायते करते मिल जायेगे। अब इसे बैंकिग सिस्टम की भ्रष्ट्रचार को पनाह देने वाली खाँमि न कहे तो और क्या कहे? क्योकि जरूरत मन्दो को लोन दिया नही जाता है और नीरव व विजया माल्या जैसो को लॉन देने के लिए बिना कुछ जांचे , पुरा बैंक ही उन्हे सौंप देते हैं।
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लेखक व सम्पादक : अणदाराम विश्नोई ' पत्रकारिता विद्यार्थी'
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जब लोन के पुछताछ के लिए बैंक मैनेजर से बात का सिल-सिला शुरू होता हुआ ,आखिरकार यह बात का सिल-सिला निराशा का मोड़ ले लेता हैं। कह देते है मेरा ट्रान्सफर होने वाले है या अभी काम ज्यादा हैं एक महीने बाद आना ,इस तरह के न जाने मैनेजर और क्या क्या बहाना बनाता हैं।
मेरे साथ भी यही हुआ जब मै अपनी SBI होम ब्रांच(घर के नजदीक) में कॉलेज के द्वारा भेजे कागजात लेकर पत्रकारिता की स्नातक डिग्री के लिए लोन लेने गया।
आखिर क्यो आम आदमी के साथ यह छलावा किया जा रहा हैं। बड़े बड़े उद्योगपत्तियो को हजार करोड़ो में लोन आसानी से मिल जाता हैं। हम जैसे को केवल 4 लाख का लोन देने से भी कतराते हैं, जबकि हम लोन की सारी शर्ते पुरी करते ।
अभी विजय माल्या के बाद नीरव मोदी 11400 करोड़ के आस पास की बड़ी रकम लोन के रूप में डकार कर विदेश भाग गया। उसकी सारी संपति जब्त करे तो भी लोन उसका मात्र 20% रूपया कवर होगा बाकी 80% रूपये तो कभी नही दे पायेगा। सरकार का तो क्या गया? वो तो अपना पांच साल राज करेगी ,और चली जायेगी। कुछ गया तो देश के ईमानदार लोगो के खुन-पसीने की कमाई के टैक्स का पैसा।
आम आदमी के लिए बैंको का लोन केवल विज्ञपन तक ही सिमित हैं।क्योकि बैंको से लोन लेने के लिए मैनेजर को राजी करना काफी मुश्किल काम हैं। आप और हम जैसे तो कर भी नही पाते हैं। कर पाते है तो सिर्फ वहीं जिनकी नेताओ व बड़ो लोगो से जान पहचान होती हैं। या फिर वही कर पाता है जिनकी खुद की पॉकेट गर्म होती है।
रामनगर उत्तराखण्ड के रहने वाले छोटे कारोबारी एन के ध्यानी बताते है कि "बैक लोन लेना मतलब लोहे के चने चबाने के बराबर हैं। पिछले 10 साल से लगातार एक रिमोट एरिया उत्तराखंड में अपना इलैक्ट्रानिक उद्योग सुचारू रूप से चला रहा हूँ। और मेरा बैंक पिछले 10 साल से मेरे कारोबार से सन्तुष्ट है। लेकिन मैं जब भी कारोबार को बढ़ाने की कोशिश करता हूँ तो बैंक मैनेजर बहाने बना कर लोन बढ़ाने से टाल देते हैं। सरकार विज्ञापन देकर जनता को गुमराह करते रहती है। वैगैर लेनदेन या जानपहचान के बिना किसी को लोन मिलना बड़ा मुश्किल काम है।"
ध्यानी अकेले इस समस्या से परेशान नहीं हैं ।इस तरह से न जाने कितने छोटे कारोबारी अपने कारोबार को उड़ान नही दे पाते हैं। मुद्दा बड़ा गंभीर हैं। इसलिए सरकार को विचार कर बैंकिंग की लोन प्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए कानुन बनाने को सोचना चाहिए।
लेखक व काव्य-सृजनकर्ता पुर्ण चन्द्र कान्दपाल कहते हैं की "बैंक के व्यवहार में जब तक बदलाव नहीं आएगा बैंक नहीं सुधर सकते । नियम के अनुसार बैंक कर्मियों को ग्राहक से शाखा में आने पर नमस्ते कहनी चाहिए । यह भी कहते हैं कि ग्राहक भगवान है । अपवाद को छोड़कर अधिकांश सरकारी बैंक कर्मी ग्राहक को आदमी तक नहीं समझते जबकि गैर-सरकारी बैंक ठीक से व्यवहार करते हैं । याद रखिये आप बैंकों को पुनः निजीकरण की ओर ले जा रहे हैं।"
वहीं, हाल नई दिल्ली में रहने वाले स्व-व्यवसायी संजीव कोहली बताते हैं कि "मै अब तक 6 बैंको में मुद्रा-लॉन के लिए आवेदन कर चूका हुँ..…वो भी LLP पंजीकृत हैं कंपनी....कोई ना कोई बहाना कर के लॉन देने से मना कर देते हैं।"
यह थी कुछ शख्स की व्यथा, अगर आप पुछने निकलोगो तो लाखो लोग ऐसी शिकायते करते मिल जायेगे। अब इसे बैंकिग सिस्टम की भ्रष्ट्रचार को पनाह देने वाली खाँमि न कहे तो और क्या कहे? क्योकि जरूरत मन्दो को लोन दिया नही जाता है और नीरव व विजया माल्या जैसो को लॉन देने के लिए बिना कुछ जांचे , पुरा बैंक ही उन्हे सौंप देते हैं।
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